छुपे हो तुम कहां श्यामा मेरी अब लाज जाती है,
तुम्ही एक आसरा मेरा तुम्हारी याद आती है.....
भरे दरबार में बैठे सभी आंखें चुराए हैं,
दुखी हैं पांचो पांडव भी यहां पर सर झुकाए हैं,
भरा है आंख में पानी निगाहें उठ ना पाती है,
तुम्ही एक आसरा मेरा तुम्हारी याद आती है.....
दुशासन उठ गया है खींचने अब मेरे दामन को,
समय मेरा है बदला जो यह भूला रिश्ते पावन को,
हुई मजबूर हूं कृष्णा यह नजरें झुकती जाती हैं,
तुम्ही एक आसरा मेरा तुम्हारी याद आती है.....
हे घट घट वासी सुंदर श्याम आओ अब चले आओ,
किसी मजबूर आंवला को प्रभु इतना ना तड़पाओ,
सुना है दुखिया की आवाज तुमको खींच लाती है,
तुम्ही एक आसरा मेरा तुम्हारी याद आती है.....
पुकारे सुनके करुणाकर दया में माया फैलाएं,
दुशासन खींचता जाता है साड़ी बढ़ती ही जाए,
सहाई जिनके तुम श्यामा ने उसकी लाज जाती है,
तुम्ही एक आसरा मेरा तुम्हारी याद आती है.....