राग :- मल्हार
( बिरहा बिरह की बावरी, गाय रही बिरहा बबिरहन के गीत,
तननस्तन की तनिया चुभ रही मोहे निर्मोही संग प्रीत,
प्रीत किए अति दुख मिले ये कैसी रीत अनीत,
अब बाजी लग गई श्याम सौ सखी हार होय या जीत।। )
वारी बरसाने वाली बारी तज गए बनवारी, वन वन मै घूमू बनके बावरी,
कि मोकू रोग विरह कौ दे गए, मोसे परसों की मोहन कह गए, चित्त चुराके लै गए ,
वन वन मै घूमूं बनके बावरी,
ओ ओ ओ......
साजन बिना ये कैसा सावन क्या श्रृंगार सजाऊं,
पिया विरह में भई बावरी ममैं जोगनिया बन जाऊं,
गली गली में नाचूं गाउं वीणा मधुर बजाऊं,
छोड़के मथुरा वन व्रंधावन कहीं नहीं मैं जाऊं,
मेरी बहना कान्हा कौ नाम पुकारू मथुरा में डेरा डारू,
जीवन की जगमग डोले नाव री
मेरी बहना बारी बरसाने वाली ........
गली गली में मैने ढूंढो तौऊ कहूं नहीं पायौ,
यमुना के तट सूने देखे कहूं नजर नहीं आयौ,
कहा कहा मैं नज़र पसारूं, कछू समझ नहीं आयौ,
दुनिया मोकूं नहीं सुहावे, सब वाही मै समायौ,
मेरी बहना सूख के पंजर है गई, अंखियों से नदिया बह गई,
दिल में है मेरे भक्ति भाव री,
ओ ओ ओ.....
बारी बरसने वाली बारी........
गायक :- प्रभात मस्ताना