सोते-सोते सोने सा जीवन व्यर्थ गुजारा है,
अब तो पगले नींद छोड़ दे बजा काल नकारा है.....
बचपन खेलकूद में खोया गई जवानी भोगों में,
जीवन के दिन यूं ही बीत गए रंग रंगीले ख्वाबों में,
पड़ी झुर्रियां अब चेहरे पर बदन कांपता सारा है,
अब तो पगले नींद छोड़ दे.....
ऐसी यू सैकड़ों सराय छोड़ छोड़ पीछे आया,
दुनिया के गोरख धंधे को लेकिन समझ नहीं पाया,
फसा अगर तू भंवर जाल में तो नहीं मिले किनारा है,
अब तो पगले नींद छोड़ दे.....
कर कर पाप खिलाया जिनको वह भी पास ना आते हैं,
नाती बेटा कहा ना माने गाली तुझे सुनाते हैं,
इतने पर भी तू कहता है यह परिवार हमारा है,
अब तो पगले नींद छोड़ दे.....
कब की घंटी बजी मगर तू पैर पसारे सोता है,
राम नहीं पहचाना अब क्यों अंत समय में रोता है,
माला जप ले राम नाम की मत फिर मारा मारा है,
अब तो पगले नींद छोड़ दे.....