तरज़-: आ लोट के आजा मेरे मीत
( गुरू बिन ज्ञान ना उपजै,
गुरू बिन मिले ना मोक्ष,
गुरू बिन लख़ै ना सत्य को,
गुरू बिन मिटे ना । )
बन्धंन काटे हर बार, जनम जब भी लिया मैंनें
मेरी करूंणा मई सरकार, हर बार सुनीं पुकार
जनम जब भी लिया मैंनें,
बन्धंन काटे हर बार...
विपदा पड़ी जब है मुझपे भारी,
हर पल संभाला उसी नें,
करी देर नहीं इक बार,
जनम जब भी लिया मैंनें,
बन्धंन काटे हर बार...
दुख में संभाला सुख में दुलारा,
ऐसा कोई नहीं है दयालु
बाबा रसका हुआ निहाल,जनंम
जनम जब भी लिया मैंनें,
बन्धंन काटे हर बार...
अपना बनाया धसका को पागल,
जन्मों जन्मों तक रहेगा,
मोह माया से छुटा हरबार
जनम जब भी लिया मैंनें,
बन्धंन काटे हर बार...