( शिव समान दाता नहीं,
विपत निवारण हार,
लज्जा सबकी राखियो,
ओ नंदी के असवार। )
बड़ा है दयालु,
भोलेनाथ डमरुँ वाला,
जिनके गले में विषधर काला,
नीलकंठ वाला,
भोलेनाथ डमरुँ वाला,
बड़ा है दयालु,
भोलेनाथ डमरु वाला…..
बैठे पर्वत धुनि रमाए,
बदन पड़ी मृगछाला है,
कालो के महाकाल सदाशिव,
जिनका रूप निराला है,
उनकी गोदी में गजानन लाला,
नीलकंठ वाला,
भोलेनाथ डमरुँ वाला,
बड़ा है दयालु,
भोलेनाथ डमरु वाला…..
शीश चन्द्रमा जटा में गंगा,
बदन पे भस्मी चोला है,
तीन लोक में नीलकन्ठ सा,
देव ना कोई दूजा है,
पि गए पि गए विष का प्याला,
नीलकंठ वाला,
भोलेनाथ डमरुँ वाला,
बड़ा है दयालु,
भोलेनाथ डमरु वाला…….
बड़ा है दयालु,
भोलेनाथ डमरुँ वाला,
जिनके गले में विषधर काला,
नीलकंठ वाला,
भोलेनाथ डमरुँ वाला,
बड़ा है दयालु,
भोलेनाथ डमरु वाला…