बरसानें में कुटिया बनाऊं री सखी

तरज़-:मेरा दिल तुझपे कुर्बान मुरलिया वाले रे
         
( लाखों बार हरि हर कहो, एक बार हरिदास,
होऐ प्रसंन श्री लाडली, दे विपिन को वास। )
   
बरसानें में कुटिया बनाऊं री सखी,
मैं भी जाऊं री सखी बनाऊं री सखी....

बरसाना मोहे लागे अति प्यारो, जहां आवे नित नन्दं दुलारो,
मैं भी जाऊं री सखी बनाऊं री सखी,
बरसानें में कुटिया बनाऊं री सखी.....

बरसानें की महिमा अति भारी, जहां लोटत मेरो बांकें बिहारी,
मैं भी जाऊं री सखी बनाऊं री सखी,
बरसानें में कुटिया बनाऊं री सखी.....

स्वामीं जू की किरपा ओर पागल से यारी,
धसका मिलेंगें राधा रसिक बिहारी,
( ना तो इज्जत ना शौहरत बड़ी चिज है, ना तो दौलत हकुमत बड़ी चिज है,
गर जहां में कोई चिज भी है बड़ी, तो गुरु चरणों की भक्ति बड़ी चिज है,
लाख़ पड़ लो किताबें नहीं कुछ असर, हो ना जब तक गुरु की करूणा नज़र,
पास बैठो तो आती है यादे ख़ुदा, ऐसे सतगुरु की सेवा बड़ी चिज है। )
स्वामीं जू की किरपा ओर पागल से यारी,
धसका मिलेंगें राधा रसिक बिहारी,
मैं भी जाऊं री सखी बनाऊं री सखी......
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