दर पर तुम्हारे आया ठुकराओ या उठा लो,
दर पर तुम्हारे आया ठुकराओ या उठा लो,
करुणा की सिंधु मैया अपनी बिरद बचा लो,
करुणा की सिंधु मैया अपनी बिरद बचा लो,
दर पर तुम्हारे आया....
श्रीधर या ध्यानु जैसा पाया हृदय ना मैंने,
जो है दिया तुम्हारा लो अब इसे सम्भालो,
दर पर तुम्हारे आया....
दिन रात अपना-अपना करके बहुत फसाया,
कोई हुआ ना अपना अब अपना मुझे बना लो,
दर पर तुम्हारे आया....
दोषी हूँ मैं या सारा ये खेल तुम्हारा,
जो हूँ समर्थ हो तुम चाहे गजब जुठालो,
दर पर तुम्हारे आया....
बस याद अपनी देदो सब कुछ भले ही ले लो,
विषमय करील पर अब करुणा की दृष्टि डालो,
दर पर तुम्हारे आया...