अरज सुनो गिरधारी

खींचे खींचे रे दुशासन मेरो चीर, अरज सुनो गिरधारी.....

हस्तिनापुर में जाकर देखो महफिल हो गई भारी,
कौरव पांडव सभा बीच में खड़ी द्रोपती नारी,
उनके नैनों से बरस रहो नीर, अरज सुनो गिरधारी....

पांचो पांडव ऐसे बैठे,जैसे अबला नारी,
द्रोपती अपने मन में सोचे,दुर्गति भई हमारी,
नहीं है,नहीं है रे धरैया कोई धीर, अरज सुनो गिरधारी....

वह दिन याद करो कन्हैया, उंगली कटी तुम्हारी,
दोनों हाथों पट्टी बांधी चीर के अपनी साड़ी,
आ गई आ गई रे, कन्हैया तेरी याद, अरज सुनो गिरधारी....

राधा छोड़ी रुक्मण छोड़ी, छोड़ी गरुड़ सवारी,
नंगे पैर कन्हैया आए, ऐसे प्रेम पुजारी,
बच गई बच गई, द्रोपती जी की लाज, अरज सुनो गिरधारी.....

खींचत चीर दुशासन हारो हार गयो बल धारी,
दुर्योधन की सभा बीच में चकित हुए नर-नारी,
बढ़ गयो बढ गयो रे, हजारों गज चीर, अरज सुनो गिरधारी.....

साड़ी हैं कि नारी है, कि नारी बीच साड़ी है,
नारी ही की साड़ी है, कि साड़ी ही की नारी हैं,
कैसे बढ़ गया रे, हजारों गज चीर, अरज सुनो गिरधारी.....

चीर बढ़न की कोई न जाने, जाने कृष्ण मुरारी,
चीर के भीतर आप विराजे, बनके निर्मल साड़ी,
ऐसे बढ़ गए रे, हजारों गज चीर, अरज सुनो गिरधारी.....
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