तर्ज – तुम्ही मेरे मंदिर।
तेरे दर पे आके मुझे क्या मिला है,
ये मैं जानता हूँ या तू जानता है,
ये मैं जानता हूँ या तू जानता है।।
ज़माने की चलगत,
बडी बेतुकी है,
जिधर देखता हूँ मैं,
उधर सब दुखी है,
घिर के दुखो में भी,
मैं क्यों सुखी हूँ,
ये मैं जानता हूँ या तू जानता है,
ये मैं जानता हूँ या तू जानता है।।
चेहरे पे चेहरे,
सभी है लगाए,
चोंट गैरो से ज्यादा,
अपनों से खाए,
मुझे किससे कैसा,
शिकवा गिला है,
ये मैं जानता हूँ या तू जानता है,
ये मैं जानता हूँ या तू जानता है।।
अकेला समझकर,
सताया जहान ने,
कदम दर कदम,
मुझको रुलाया जहान ने,
कैसे हंसी का,
कमल ये खिला है,
ये मैं जानता हूँ या तू जानता है,
ये मैं जानता हूँ या तू जानता है।।
डूबेगी नैया,
कहती थी दुनिया,
पतन की उम्मीदों में,
रहती थी दुनिया,
नैया को कैसे,
किनारा मिला है,
ये मैं जानता हूँ या तू जानता है,
ये मैं जानता हूँ या तू जानता है।।
अँधेरा घना था,
ना दिखती थी राहे,
तूने संभाला मुझको,
फैला के बाहें,
नैनो को ‘संजू’ कैसे,
उजाला मिला है,
ये मैं जानता हूँ या तू जानता है,
ये मैं जानता हूँ या तू जानता है।।
स्वर – संजू जी शर्मा।