खाटू में एक भवन निराला, जिसमें बैठा लखदातार,
दीनानाथ दयालु बाबा, श्यामधणी मेरा सरकार….
खाटू नगरी में बैठा वो, करता जग संचालित है,
हानि लाभ यस अपजस उसकी, करुणा पे आधारित है,
है सरकार वो सरकारों का, सृष्टि का है पालनहार….
जिस प्रेमी ने श्याम हवाले, कर दी है अपनी पतवार,
उसकी नैया श्याम चलाये, होती है मझधार से पार,
जीवन उसके हाथ में सौंपो, जिसके हाथ में है संसार….
बाप के जैसा प्रेम दिखाए, माँ की तरह करता है दुलार,
राह दिखाता मित्र के जैसे, भाई जैसा करता प्यार,
श्याममुरारी लखदातारी, पाल रहा मेरा परिवार…..
दीनजनों का नाथ ये करता, दीनों से ही यारी है,
सौदागर है भाव भजन का, खुशियों का व्यापारी है,
ठाठ निराले हैं बाबा के, महिमा उसकी अपरमपार…..
"मोहित" जिसपे है साँवरिया, उसको ही मिलता दरबार,
चौबिस घंटे सातों दिन वो, साथ चले बन के रखवार,
साँरी माँगें पूरी होंगी, जाके माँगो तो इक बार….