मन सागर दरियाव है, उड़े रंग फुहारा,
सुफल बाग़ मनरंग है, फूली रया फुलवारा,
मन सागर दरियाव है.............
ब्रह्म निज बीज बोइया, तन तत्व का क्यारा,
प्रेम प्रीत जल सिंचिया, खड़ा बाग़ तुम्हारा,
मन सागर दरियाव है.............
भांति भांति का वृक्ष है, रहता न्यारा हो न्यारा,
नाना विधि फुल खिली रया, चढ़े देव के अंग,
मन सागर दरियाव है............
कल्पवृक्ष कृता धनी, फल लाग्या रे मोती,
वा की छाया में बैठके, कोई परखो रे ज्योति,
मन सागर दरियाव है............
ब्रह्मगिर रहे ब्रह्म ध्यान में, कल्पवृक्ष की छाया,
वा की छाया में बैठके, पद सिंगाजी ने गया,
मन सागर दरियाव है............