हिंडोरे झूलत तन सुकुमार ।
पुलकि पुलकि राधे उर लागत, प्रीतम प्रान आधार ॥ [1]
भाइ बसन सजे मनसिज के, उर वर हार सुढार ।
सुख में झूलति कुँवरि लाड़िली, रमकत स्याम उदार ॥ [2]
जुगल सरूप अनूप विराजत, मनमथ भेद अपार ।
श्रीरसिक बिहारी की छवि निरखत, खरे कुंज के द्वार ॥ [3]