पड़ा गुरु शरण में तेरी देवो शुभ ज्ञान विचारा ,
धरूँ में ध्यान चरणों का तेरा ले कर के आधारा...॥
करूँ मैं सत्संग चढ़े राम रंग , धरूँ प्रेम उमंग हो जाऊं में निसंग...।
हरो अपराध सभ मन के होवे जीवन सफल सारा...॥
माया का जंजाल काटले मोह जाल , दुखी करत काल देवो सुख विशाल...।
तजूँ में आश तृषणा को देवो सद्गुण साधन चारा...॥
मांगूं में सुमती रहे ना कुमती देवो यकति पाऊँ में मुकती...।
गाऊं में गीत गोविन्द के तरु भव सिंधु से पारा...॥