श्री हरिदास
तरज़:-कोई बिछुड़ गया मिलके
ओ कब जाऊंगा बृज़ धाम,बृज़ धाम हां बृज़ धाम
ओ कब....
वृन्दावन की कुंज गलिंन में,यमुना तट और बन्सीं वट में
मिल जायें घनश्याम
ओ कब....
बरसानें की ऊंची अटारी,जहां बिराजे शामा
प्यारी पुराणों हो सब काम
ओ कब....
पागल मन की आस यही है,जीवन में बस प्यास यही है
धसका हो वहीं विश्राम
ओ कब.......।
रचना:-बाबा धसका पागल पानीपत
फोन:-7206526000