बिजुरी चमके आधा रात, बादर गरजे आधा रात


सम- बिजुरी चमके आधा रात।। बादर गरजे आधा रात।।

टेक- लागे डर डरावन जिवरा कांपन लागे, रतिहा म बरसा रानी बरसन लागे

उड़ान :-होके परसन मोर शीतला मईया..
बरसा दिस अमरित के धार, सुनके लड़का के गोहार..

(1)

लगती वो जेठ के जब आईस महीना, दरकगे धरती सुखागे भुइया
नदिया नरवा के पानी सिरावन लागे, छोटे-बड़े डबरी अटागे कुंड्यां
हरियर-हरियर रुखवा अब होगे दुड़गा, तरिया के घलो नई बाढ़े घुइयां
मचगे जग म परलय कईसे होगे वो, साथी संग जहुरिया बिचारे गुंड्यां

उड़ान - दिखत हे अंधियार ।। जिनगी बर हाहाकर ।।
होके परसन मोर शीतला मईया..
बरसा दिस अमरित के धार, सुनके लड़का के गोहार

(2)

आइस फेर आषाढ़ के लकठाती महीना, पहुंचिन जुरियाके सब शीतला अंगना मान मनौती के साधे ये माता पहुंचनी, भगत के बंधाये पुरखौती बंधना शीतला के सेवा करिन सेउक मन भर, तभो हड़िया के नई आवय अंधना अबले तिपथे घाम बरसय नई बदरा, संसो मन म छागे फंसगेहे फंदना

उड़ान- सब पारत हे गोहार ।। दाई विपदा ला टार ।।
होके परसन मोर शीतला मईया..
बरसा दिस अमरित के धार, सुनके लड़का के गोहार

(3)

पूजा पाठ कर आगे सेउक घर मा, मुड़ धरे बईठे गावत गीत ला
चिंता फिकर करत पहागे बेरा, सूतगे निंदरा म सपनावत शीतला
रटपटाके उठिस सेउक रतिहा, टमरथे दसना खोजथे मीत ला
उही बेरा गरजथे बादर गड़गड़ाके, डर्रागे जिवरा सुमरथे बिमला

उड़ान- का होगे करतार ।। ये दुख ले अब उबार ।।
होके परसन मोर शीतला मईया..
बरसा दिस अमरित के धार, सुनके लड़का के गोहार

(4)

कड़के बिजूरी बड़ पानी बरसे, बुंद-बूंद तरसइया बर गिरे झिरसा
कारी वो रात के घुमड़-घुमड़ के, धरती म सरग के अमरित बरसा
सरर-सरर चले पवन पुरवाई, हिरदे ला जुड़ाये मन देथे हरसा
नदिया-नरवा छलके भराये तरिया, कतको जघा के कटागे धरसा

उड़ान - मेघ बरसे अन सम्हार ।। मया बनके जलधार ।।
होके परसन मोर शीतला मईया..
बरसा दिस अमरित के धार, सुनके लड़का के गोहार

(5)

होत बिहनिया सेउक पहुंचे देवाला, आके माथ नवाथे चढ़ाथे फुलवा
रही-रही के गोहराये बोहाये आंसू धार, रखबे आसीस झन छोड़बे उलवा चनादार दही लाये भोग कांचा पाका, लिम के डारा चंवर ढुलवा
कईथे भगत अरज के परेंव तोर चरन, रखबे कोरा मा जस सावन झुलवा

उड़ान - महतारी अवतार ।। लईका ला कर दुलार।।
होके परसन मोर शीतला मईया..
बरसा दिस अमरित के धार, सुनके लड़का के गोहार

(6)

जग हा जुड़ाये शीतलाये भुइंया, नीर ले नहाये मोर धरती मईया
चारो मुड़ा हरियर दिखे रूख राई, हरसे परानी जीव नाचे ता थईया
छाती ले उदगारे साग पान फल फूल, शीतला किरपा ले किसनहा भईया
तोर सेवा ले पाये सब अनधन के भंडार, गौतम के बूढ़ जाहि का दाई नईयां

उड़ान- बन जाते पतवार ।। मोर डोंगा ला उबार ।। होके परसन मोर शीतला मईया.. बरसादिस अमरित के धार, सुनके लड़का के गोहार ।। इति श्री।।

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