आजु लखि, ललिहिं गई बलिहार।
सिंहासन-आसीन ललिहिं पग, चापत नंदकुमार। विधि, हरि, हर सब कहत एक स्वर, 'जय श्री भानुदुलार'।
अनुपमेय-छवि-सींव-माधुरी, शोभा सिंधु अपार।
सकल-सुवासि-सुवासित जल सों, मज्जन करि रिझवार।
उर कंचुकि परिधान नील पट, चूनरि लिय सिर धार।
किये अरगजा लेप गौर तनु, तेल फुलेलन बार। भरी माँग सिंदूर-अलंकृत, बिंदी इंदु लिलार। कजरारे दृग काजर राजत, सुरमा सुघर सँवार। राग-अरुणिमा अधर कपोलनि, रदन पान अरुणार।
चिबुक एक तिल, इत्र सुगंधित, विविध अंग बहु हार।
अंग अंग आभूषण भूषित, दोउ कर मेहँदी सार। चरण मेहावरि अरुण, सखी इमि, किय सोरह श्रृंगार।
सोइ 'कृपालु' लखि सकै कृपा करि, जेहि चितवति सुकुमार॥
भावार्थ - (एक सखी कहती है) आज सोलहों शृंगार से युक्त किशोरी जी को देखकर मैं बलि-बलि गयी। क्या ही मनोहर झाँकी थी ! सिंहासन पर किशोरी जी बैठी हुई थीं एवं श्यामसुन्दर उनके चरणों को अपनी गोद में रखकर दबा रहे थे। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर आदि सभी एक स्वर से वृषभानुनन्दिनी की जय बोल रहे थे। उस समय की किशोरी जी की शोभा अनुपम थी एवं उनके रूप का माधुर्य विलक्षण था। सोलह श्रृंगार निम्नलिखित हैं:-
सर्वप्रथम विविध प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों से सुगन्धित जल के द्वारा किशोरी जी ने स्नान किया, फिर वक्षःस्थल में चोली तथा नीचे नीलाम्बर एवं सिर पर चुनरी को धारण कर लिया। फिर गोलोकेश्वरी ने अर्गजा का लेप किया, तत्पश्चात् सुगन्धित तेल एवं फुलेल लगाया। फिर माँग में सिंदूर भरा, एवं ललाट में चन्द्रमा के समान बिन्दी लगायी। कजरारी आँखों में काजल तथा सुरमा आँज लिया। एक विशेष प्रकार के लाल रंग को अधरों एवं गालों में लगा लिया। दाँत पान खाने से लाल हो गये। ठोड़ी पर एक तिल है एवं सुगन्धित इत्र लगाये हुये हैं तथा अनेक प्रकार के हार विविध अंगों में पहन लिये हैं। प्रत्येक अंग में यथोचित गहने तथा हाथ में मेहँदी एवं पैरों में महावर लगा ली। इस प्रकार सोलह श्रृंगार किए हुए हैं। 'कृपालु' कहते हैं कि इस रस-माधुरी का दर्शन वही कर सकता है जिस पर किशोरी जी की दया दृष्टि हो जाय।
पुस्तक : प्रेम रस मदिरा, निकुंज माधुरी
पद संख्या : 4
पृष्ठ संख्या : 481
सर्वाधिकार सुरक्षित © जगद्गुरु कृपालु परिषत्