जायो जशुदा लाल, अनोखो।
मोर मुकुट की लटक अनोखी,
तैसेहिं लट घुँघराल।
भृकुटि बंक की मटक अनोखी, तैसेहिं तिलक सुभाल ।
चितवनि जादूभरी अनोखी,
तैसेहिं नैन विशाल।
मधुर मधुर मुसकानि अनोखी ,
तैसेहिं गल वनमाल।
पीतांबर फहरानि अनोखी,
तैसेहिं काछनि लाल।
नूपुर की झनकार अनोखी,
तैसेहिं चाल मराल।
ग्रीवा-कटि-पद-मुरनि अनोखी ,
तैसेहिं मुरलि रसाल।
है 'कृपालु' सब बात अनोखी,
फँसे शंभु शुक जाल ।।
भावार्थ- यशोदा मैया ने अनोखा पुत्र पैदा किया है, जिसकी मोर मुकुट की लटक और घुँघराली लट अत्यन्त अनोखी हैं। उनकी टेढ़ी भौंहों की मटक एवं ललाट में लगा हुआ तिलक भी अत्यंत विलक्षण है। उनका जादू भरा देखना और जादू भरे नैन भी अत्यंत विलक्षण हैं। उनकी मीठी मुस्कराहट और गले की वनमाला भी अत्यंत अनोखी है। पीताम्बर की फहरान और लाल काछनी अत्यधिक अनोखी है। उनकी नूपुर की ध्वनि और हंस के समान चाल भी अत्यंत विलक्षण है। उनकी गर्दन, कमर और पैरों की मुरनि और मधुर मुरली तो अत्यन्त ही अनोखी है। 'श्री कृपालु जी महाराज' कहते हैं कि उनकी सभी बातें इतनी अनोखी हैं कि योगीराज शंकर और परमहंस शुकदेव तक उनके जाल में फँसे हैं।
पुस्तक : प्रेम रस मदिरा, श्रीकृष्ण - माधुरी
पृष्ठ संख्या : 184
पद संख्या : 2