कुँवरि ! जा खेलु लतान तरे।

कुँवरि ! जा खेलु लतान तरे।
कहा  करेगी जानि सगाई, पाछे वृथहिं परे।
ऊँ, ऊँ, करि पटकति पग भू पर, झगरति नैन झरे।
मैया कह, सुनु कुँवरि ! कान महँ, रहियो उरहिं धरे।
तू जिमि गुड़ियहिं ब्याहु करति नित, तिमि सो ब्याहु करे।
कह 'कृपालु' किलकारि कुँवरि द्रुत, करि दे ब्याहु अरे॥

भावार्थ - छोटी-सी भोरी-भारी किशोरी जी के 'सगाई' का अर्थ पूछने पर कीर्ति मैया प्यार-भरी डाँट में डाँटती  हुई कहती हैं- "अरी लाली ! क्यों अकारण पीछे पड़ी है? सगाई का अर्थ जान कर तू क्या करेगी? जा कुंज लताओं में खेल।" किन्तु किशोरी जी मैया की बात नहीं सुनतीं, ऊँ-ऊँ करके पृथ्वी पर पैर पटकती हैं एवं आँखों से आँसू बहाती हुई झगड़ा करती हैं। यह देख कर मैया ने किशोरी जी के कान में कहा कि सगाई का अर्थ चुपके से बता रही हूँ और किसी से न बताना। देख लाली ! जिस प्रकार तू गुड़िया-गुड्डा का ब्याह रचाती है उसी प्रकार नन्दलाल से तेरा ब्याह होगा। 'कृपालु' कहते हैं कि यह सुन कर भोली-भाली भानुदुलारी किलकारी मार कर हँसने लगीं और उछलते हुए बोलीं- अरी मैया तब तो अभी मेरा ब्याह कर दे।”


पुस्तक : प्रेम रस मदिरा,श्री राधा बाल लीला माधुरी
पृष्ठ संख्या-178
पद संख्या-14


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