मुख में मुद्रिका श्री राम की ,
तन पे चोला लाल हैं ,
उड़ चला श्री राम का सेवक ,
इसकी लीला कमाल हैं ,
रस्ते में सुरसा ने रोका ,
उड़ते हुए हनुमत को टोका ,
बल बुद्धि की दे के परीक्षा ,
लंका पहुंचा वीर ये योद्धा ,
लंका में जब मिली लंकिनी ,
मार के मुस्ठी दे दी पटकनी ,
हाथ जोड़कर बोली लंकिनी ,
निश्चित हैं अब लंका ढहनी ,
माता को जब खोजने लागे ,
आहट सुन विभिषण जागे ,
पुछा उसने कौन हो भाई ,
तब हनुमत ने सब बात बताई ,
मैं हूँ राम का दूत ओ भ्राता ,
मुझे बता दो कहां है माता ,
विभीषण ने फिर राह बताई ,
अशोक वाटिका उसने दिखाई ,
हनुमत ने जब माता देखी ,
पास में उनके मुद्रिका फेंकी ,
देख मुद्रिका माता हर्षाई ,
राम की मुद्रिका कहा से आई ,
तब हनुमत सामने आया ,
बोला मुद्रिका मैं हूँ लाया ,
मैं प्रभु राम का सेवक माता ,
राम हैं मेरे भाग्य विधाता ,
अब चिंता सब त्याग दो माता ,
कुछ मीठे फल चखकर हूँ आता ,
चले हनुमत लीला दिखाने ,
रावण की लंका को जलाने ,
जो भी राक्षस सामने आया ,
हनुमत ने उसे मार गिराया ,
अक्षय कुमार को पल में मारा ,
मेघनाथ को भी ललकारा ,
रावण की जब सभा में पहुंचा ,
बड़ी जोर से हनुमत गरजा ,
बोला सुन रावण अभिमानी ,
राम से बेर ना कर अज्ञानी ,
रावण ने जब बात न मानी ,
पुछ में आग लगाने की ठानी ,
जैसे ही पुछ में आग लगाई ,
हनुमत ने पुरी लंका जलाई ,
राम नाम का बजा के डंका ,
जला डाली सोने की लंका ,
माता से फिर ले के निशानी ,
वापस लौटा हनुमत ज्ञानी ,
Bhajan Lyrics - Jay Prakash Verma, Indore