श्यामा जी की इस ओढ़नी को ले जाकर हरि को दे देना ।
श्यामाजी की इस ओढ़नी को,
ले जाकर हरि को दे देना ।
मेरा तो पत्र यही ही है,
लिखना पढ़ना हम क्या जाने ।।
राधा नेत्रांजलि से छलके,
आँसू इसके हर धागे में ।
आसूँ मिश्रित काजल देखो,
इसको हर कोई क्या जाने ।। श्यामा जी...
रासेश्वरि के कर कमलों की,
मेंहदी देखो है लगी हुई ।
केशर उरोज के भी देखो,
पर इसको कोई क्या जाने ।। श्यामा जी...
प्रस्वेद बिन्दु प्यारी जू के,
इस ओढ़नी में हैं घुले हुए ।
मादक सुगंध इसकी प्यारी,
गोपाल बिना कोई क्या जाने ।। श्यामा जी...
सारे जीवन बाँचें इसको,
पर अन्त न पावेंगे नटवर ।
उत्तर इसका आँसू ही है,
देवा तू इसको क्या जाने ।। श्यामा जी...
स्वर : दासानुदास श्रीकान्त दास ।