सुनलो जमाने वाले,
प्रभु का भजन कर भाई ।
काहे को समय गँवाई,
तूने काहे को समय गँवाई ।।
काहे सताया तूने, जीवों को बन्दे,
काहे लगाया तूने पाप के फन्दे ।
काहे को तुमने है पाप कमायी,
काहे को तुमको ये माया सतायी ।।
अब भी समय है भाई,
प्रभु को ले मन में बसाई ।।
काहे को....
धन के गुमानी नर, कुछ ना मिलेगा,
अन्त समय खाली हाथ चलेगा ।
अपने को प्रभु को, करो प्यारे अर्पण,
दीनों की सेवा में, करदो समर्पण ।।
करले सत्संग भाई,
अपने को प्रभु में लगाई।।
काहे को....
कोई न तेरा यहाँ, ना तू किसी का,
प्रभु से तू प्रेम करले, सब है उसी का ।
उसके सिवा जग में, ना कोई दूजा,
दिल में बसा ले उसको, कर ले तू पूजा ।।
कान्त तू ध्यान धरले,
प्रभु को ले दिल में बसाई ।।
काहे को....
रचना : श्रीकान्त दास जी महाराज ।
स्वर : सियाराम जी ।