उधों जी जाके पैरों में, कभी लागे ना कंकरिया,
क्या जाने पीर पराई,
यह कह रही ब्रज सखियां,
दुखी हुए सब ब्रज नर नारी,
दुखी हुई उनकी महतारी.....
नंद बाबा की गौशाला में रोए रही गैया,
क्या जाने पीर पराई यह कह रही ब्रिज सखियां......
जमुना तट भी सूना पड़ा है,
पेड़ कदम का उदास खड़ा है,
श्याम दरस को तरस रहे हैं,
सब होकर बावरिया,
क्या जाने पीर पराई,
यह कह रही ब्रज सखियां.....
लता पता सब सुख रही हैं,
निधिवन कलियां पूछ रही हैं,
कुकू कह के कूक रही है,
बन के कोयलिया,
क्या जाने पीर पराई,
यह कह रही ब्रज सखियां.....
ब्रह्म ज्ञान ना हमें समझाओ,
योग ध्यान में ना हमें उलझाओ,
प्रेम हमारा ही है पूजा,
कब आएगा वह छलिया,
क्या जाने पीर पराई,
यह कह रही ब्रज सखियां.....
रोम रोम में वही बसा है,
इन नैनन में वही छुपा है,
धड़कन बन वो धड़क रहा है,
हर सांस में कन्हैया,
क्या जाने पीर पराई,
यह कह रही ब्रज सखियां.....