इन्सान की खुशबू रहती है,
इन्सान बदलते रहते हैं।
दरबार लगा रहता है यहां,
दरबान बदलते रहते हैं।।
जो हिम्मत वाले मांझी हैं,
तूफानों से टकराते हैं।
इन तूफानों का क्या कहना,
तूफान बदलते रहते हैं।।
जो पक्के हैं इकरारों के,
इकरारों पर मिट जाते हैं।
जो बातों के बातूनी है,
ऐलान बदलते रहते हैं।।
एक दस्तरखान है ये दुनियां,
सब मौत का लुकमा बनते हैं।
रहता है दस्तरखान बिछा,
मेहमान बदलते रहते हैं।।
ये मेला है बस दो दिन का,
कुछ कर चलिए कुछ दे चलिए।
इक दिल की हुकूमत बसती
यहां, सुलतान बदलते रहते हैं।।
ओ भोले मानव ! पागल तू,
क्यों मरता है वरदानों पर।
बलिदान ही जिन्दा रहते हैं,
वरदान बदलते रहते हैं।।