हे निम्बार्क दीनबन्धो

हे निम्बार्क दीनबंधो! सुन पुकार मेरी।
पतितन में पतित नाथ,शरण आयो तेरी।।

मात तात भगिनी भ्रात,परिजन समुदाई।
सब ही सम्बन्ध त्यागि,आयो सरनाई।।

काम क्रोध लोभ मोह,दावानल भारी।
निसिदिन हौं जरौं नाथ,लीजिये उबारी।।

अम्बरीष भक्त जानि,रक्षा करि धाई।
तेसै ही निज दास जानि,राखौ सरनाई।।

भक्तवछल नाम नाथ,वेदन में गायो।
"श्रीभट्ट" तव चरन परस,अभै दान पायो।।

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