मेंरे घनश्याम मैँ तेरे नशे में जीता हूँ।
तेरे ही नाम के भर भर के प्याले पीता हूँ।।
तू नहीं जिसमें महफ़िल से कोई काम नहीं।
जहाँ हो तेरा नाम मैँ भी वहाँ रहता हूँ।।
सुबह शाम रात्रि दोपहर हो या कोई समय।
आठो पहर ही राधे श्याम श्याम कहता हूँ।।
दिखाई देता जड़ चेतन हर कण कण में।
इसीलिए तो हर किसी से प्रेम करता हूँ।।
तेरे कितने ही नाम गोवर्धन गिरधारी।
कभी गोपाल कभी कृष्ण श्याम कहता हूँ।।
है अनुरोध बरसता ही रहे प्यार तेरा।
झूमकर मस्ती में तेरा ही नाम लेता हूँ।।
रचना-रामश्रीवादी अनुरोध
आष्टा मध्यप्रदेश