तर्ज-अगर श्यामा जू ना होती
तड़पती हूँ विरह में श्याम, ना जानें कब मिलन होगा
इसी उम्मीद पे जीवन, मैंने सारा बिताया है
तड़पती हूँ...
पल पल नाम जिवाह पे, मन तेरे ध्यान में खोया
लगी है आग तन मन में, ना जाने कब मिलन होगा
तड़पती हूँ विरह में श्याम, ना जानें कब मिलन होगा
इसी उम्मीद पे जीवन, मैंने सारा बिताया है
कहाँ जाऊं करूँ मैं क्या, समझ मुझे कुछ ना आता है
दर्द इतना बड़ा दिल में, ना जानें कब मिलन होगा
तड़पती हूँ विरह में श्याम, ना जानें कब मिलन होगा
इसी उम्मीद पे जीवन, मैंने सारा बिताया है
ये मन रूप रसका पागल है, धसका है धस्सा जाता
आख़री सांस है मेरी, ना जानें कब मिलन होगा
तड़पती हूँ विरह में श्याम, ना जानें कब मिलन होगा
इसी उम्मीद पे जीवन, मैंने सारा बिताया है
बाबा धसका पागल पानीपत