गोपी विरह गीत : तुम्हें हम चाहतीं इतना मगर तुम छोड़ जाते हो ।
भजन रचना : प. पू. श्री श्रीकान्त दास जी महाराज ।
स्वर : सुभाष सिंह राजपूत जी ।
तुम्हें हम चाहतीं इतना, मगर तुम छोड़ जाते हो ।
बढ़ाये प्रेम जिस दिल में, उसी को तोड़ जाते हैं ॥
बतायें किस तरह तुमको, तुम्हें हम चाहतीं कितना ?
तरस जाते मेरे नैना, मगर मुख मोड़ जाते हो ॥
तुम्हें...
सुनेगा कौन दुख मेरा ? तुम्ही बस एक अपने हो ।
मगर तुम भी हमें तजकर, कहाँ ? किस ओर जाते हो ॥
तुम्हें...
बता दे आज सच मोहन, मेरा क्या प्रेम झूठा था ।
कान्त यदि सच नहीं यह तो, हमें क्यों छोड़ जाते हो ॥
तुम्हें...