मैं नारायण घर ले आई
अब मुझे किसी की कमी नहीं
अब धन दौलत की कमी नहीं
माया का सागर गहरा है
और मुझे तैरना आता नहीं
नैया का नाम कन्हैया है
डूबे तो कोई फिक्र नहीं
मैं नारायण घर ले आई...
घनघोर अंधेरा इस जग में
मैं बुझा दीप इस बाती का
सूरज को मना कर ले आई
अब अंधियारे की फिक्र नहीं
मैं नारायण घर ले आई...
खिड़की दरवाजे खोल दिए
सारा सामान नीलाम हुआ
आना-जाना आसान हुआ
ताले चाबी की फिक्र नहीं
मैं नारायण घर ले आई...
घर से था मंदिर बहुत ही दूर
पैरों में मेरे प्राण नहीं
जब घर में प्रभु जी आ बैठे
तीरथ जाने की फिक्र नहीं
मैं नारायण घर ले आई...
मैं नारायण घर ले आई
अब मुझे किसी की कमी नहीं
अब धन दौलत की कमी नहीं