रघुवर तुमको मेरी लाज ।
सदा सदा मैं शरण तिहारी,
तुम हो गरीब निवाज़ ॥
पतित उद्धारण विरद तिहारो,
शरावानन सुनी आवाज ।
हूँ तो पतित पुरातन कहिए,
पार उतारो जहाज ॥
अघ खंडन दुःख भन्जन जन के,
यही तिहारो काज ।
तुलसीदास पर कृपा कीजे,
भक्ति दान देहु आज ॥