बन्दे चल सोच समझ के क्यों ये जनम गवाय,
बार बार ये नर्तन चोला तुझे न मिलने पाय ॥
बचपन बीता आई जवानी खूब चैन से सोया,
गुजर गई अनमोल घडी तो देख बुढ़ापा रोया,
इस योवन पे नाज तुझे वो मिटटी मैं मिल जाये,
बन्दे चल सोच समझ के......
झूठ कपट से जोड़ा तुमने अपना माल खजाना,
काम क्रोध मध् लोभ मैं फास कर प्रभु को न पहचाना,
मुठ्ठी बांध के आया जग में हाथ पसारे जाए,
बन्दे चल सोच समझ के.....
ये दुनिया है सराय है मुशाफिर छोड़ इसे है जाना,
कोई किसी का नहीं जगत मैं ये तन है बेगाना,
उड़जाये पिंजरे का पंछी पिंजरा साथ न जाये,
बन्दे चल सोच समझ के.......