श्याम की अदालत मे जो भी चला आता है,
होती सुनवाई वहा और वो नयाए पाता है,
श्याम की अदालत मे.....
सबके मुक़दमे सुनता है बाबा,
सच्चा ही फैसला करता है बाबा,
नयाए की पताका ये फेहराता है,
श्याम की अदालत मे......
चाला की चलती ना किसी की,
झूठे की इसने कस के खबर ली,
भटके को मंजिल पे पोहंचाता है,
श्याम की अदालत मे.......
कर्मो का लेखा जाते ही ये परखे,
देखो समपर्ण क्या वा रे निरखे,
तब जाके मोरछड़ी लहराता है,
श्याम की अदालत मे....
जिसने भी समजी प्रेम परिभाषा,
चोखानी होती न उनको निराशा,
प्रेमी ये प्रेमियों का बन जाता है,
श्याम की अदालत मे.....