क्या मैं देखु यहाँ के नज़ारे

तेरे चहेरे से नजरे न हटती  क्या मैं देखु यहाँ के नज़ारे,
मेरे नैनो को कुछ भी न भये और नहीं कोई इस में समाये,
कोई दूजी छवि अब न जचती क्या मैं देखु यहाँ के नज़ारे,

नहीं बैकुंठ की मुझ को चाहत नहीं स्वर्ग की है कोई ख्वाइश,
मेरे खाटू में ही साँस निकले बस इतनी सी है गुजारिश,
तू मेरे सामने हो तुजमे समउ चरणों में तेरी मैं अर्ज लगाऊ,
मेरी आखियो को तेरे सिवा कुछ न दे दिखाई,
तेरी गलियों में जन्नत है बस्ती ,
क्या मैं देखु यहाँ के नज़ारे.....

तूने बदली है मेरी ये दुनिया जब से ओढ़ी है तेरी चदरियाँ,
देख ते देख ते तुझ को बाबा बीत जाए ये सारी उमरियाँ,
जिसको सुन के तू खुश हो जाये श्याम तराने वो तुम को सुनाये,
तेरे भजनो की मैफिल युही सजती रही,
हर कोई होता तेरा दीवाना जो भी आया है दर पे तुम्हारे ,
क्या मैं देखु यहाँ के नज़ारे......

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