कभी ये ग़म में कभी ख़ुशी में निकल ही जाते है चार आंसू,
मगर कन्हियाँ तेरे प्यार में निकले है बेसुमार आंसू,
हे श्याम तेरे सिवा जहां में मिला न कोई भी यार ऐसा,
जो आके मुझसे ये पुछ लेता क्यों आये यार आँखों में आंसू,
समज के चरणों का दास तुमने सदा ही मुझको दिया सहारा,
कभी जो दुख में भिगोई आँखे तुम्ही ने पौंछे दातार आंसू,
मैं श्रद्धा से प्यार में भिगो कर चढ़ा रहा हु तुम्हे जो मोटी,
ये है गजेसिंह की शुद पूंजी मैं लाया कोई उधार आंसू,
कभी ये ग़म में कभी ख़ुशी में