रोटी हुई आँखों को तूने ही हसाया है,
तू ने इस जीवन को जीना भी सिखाया है,
रोती हुई आँखों को तूने ही हसाया है,
चौ और मुशीबत थी घर में भी फजीयत थी,
उस वक़्त मुझे बाबा तेरी ही जरुरत थी,
भुजते हुए दीपक को तूने ही जलाया है,
तू ने इस जीवन को जीना भी सिखाया है,
लाचार थे हम इतने खुद से भी हारे थे,
इक तेरे भरोसे पे अरमान हमारे थे,
कर्जे में दबे थे हम हमे सेठ बनाया है,
तू ने इस जीवन को जीना भी सिखाया है,
इतने एहसान तेरे मोहित क्या बतलाये,
रेहमत का तेरी मोहन वो व्याज ना दे पाए,
मुझ जैसे पत्थर को कोहिनूर बनाया है,
तू ने इस जीवन को जीना भी सिखाया है,