उसकी रजा से शिकवा कैसा ये इंसान का खेल नहीं,
गा के साई का राग नकली दुनिया को त्याग,
बहुत नींद हो चुकी झूठे सपनो से जाग,
पूजा पाठ के सागर में पानी और आग का मेल नहीं,
वो दीपक भी जल सकता है जिस दीपक में तेल नहीं,
उसकी रजा से शिकवा कैसा ये इंसान का खेल नहीं,
उसके भागो में चल उसकी शाखों में झूम दुनिया भर में मचा उसकी मर्जी की धूम,
उसकी छतर में हरा भरा है कौन सा भुटा बेल नहीं,
वो दीपक भी जल सकता है जिस दीपक में तेल नहीं,
उसकी रजा से शिकवा कैसा ये इंसान का खेल नहीं,
हर घडी रात दिन बस वोही नाम ले,
शुक्र की बात कर सबर से काम ले,
साई नाथ की राह पे चलना,इम्तेहान है खेल नहीं,.
वो दीपक भी जल सकता है जिस दीपक में तेल नहीं,
उसकी रजा से शिकवा कैसा ये इंसान का खेल नहीं,