हम कब से है साई तुझपे फ़िदा कुछ याद नहीं कुछ याद नहीं,
ये शायद जन्मो का रिश्ता कुछ याद नहीं,
हम कब से है साई तुझपे फ़िदा......
अब चारो और है उजारा एक दीप जला कर बैठे है,
हम निकल गए अंद्यारो से एक राह पे आकर बैठे है,
कब छूटा मन का दौरा कुछ याद नहीं कुछ याद नहीं,
हम कब से है साई तुझपे फ़िदा....
हम ने पाया रेहमत का धन,
जबसे तन मन है साथ तेरे,
अब तू है हमारा रखवाला अब हम पे सदा है हाथ तेरे,
अब हर पग हर पल तेरे सिवा कुछ याद नई कुछ याद नहीं,
हम कब से है साई तुझपे फ़िदा...
तू ही जाने तेरी दुनिया में जय सच्चा है क्या झूठा है,
पर तेरी इज्जत पे हमने तेरा ही खजाना लुटा है,
किस वक़्त खुला तेरा दरवाजा कुछ याद नहीं कुछ याद नहीं,
हम कब से है साई तुझपे फ़िदा