ऊँचे पहाडो पर बसा है माँ तेरा दरबार

लोग करते हैं कोशिश जितनी मुझे रुलाने की, मुझे मिलती है ताकत और मुस्कुराने की
वो समझते हैं की मैं टूट के बिखर जाऊँगा, मुझे यकीन हैं मैं और  निखर आऊँगा
मैंने गिर गिर के अपने आपको उठाया है, मुझे यकीन है उस माँ का मुझ पे साया है
ऊँचे पहाडो पे बसा है माँ तेरा दरबार, मन नहीं करे लौटने को आए जो एक बार

ऊँचे पहाडो पर बसा है माँ तेरा दरबार,
मन नहीं करे लौटने को आए जो एक बार।
वैष्णो रानी, ओ महारानी,
सुनलो सुनलो माँ की कहानी॥

शक्ति की परीक्षा ली भैरव ने आके,
गर्भजून में गयी माँ आँचल छुड़ा के।
ऊँचे ऊँचे पर्वतो पे बरसे तुषार,
मन नहीं करे लौटने को, आए जो आए एक बार।
बचपन बूढा चाहे जवानी, सब की माँ है  वैष्णो रानी॥

नौ महीने बाद निकली हो के विराट,
दंग हुआ देख कर के माँ को भैरवनाथ।
खडग और त्रिशूल दिया भैरव को मार,
धड से सर जो अलग  हुआ, लगी रक्त धार।
माँ है दानी वैष्णो रानी,
सुनलो सुनलो माँ की कहानी॥

अंत समय भैरव ने माँ को पुकारा,
चरणों में शीश धर के भाव से निहारा।
माँ है दानी, ओ महारानी,
सुनलो सुनलो माँ की कहानी॥

गीतकार संगीतकार: शिवेश श्रीवास्तव(पत्रकार एवं संगीतकार, पूर्व संपादक बाल भास्कर पत्रिका)
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