गंगा से गंगा जल भर के कंधे शिव की कावड़ दर के,
भोले के दर चलो लेके कावड़ चलो,
सावन महीने का पावन नजारा,
अध्भुत अंखोखा है भोले का नजारा,
सावन की जब जब है बरसे बदलियां,
झूमे नाचे और बोले कावड़ियाँ,
भोले के दर चलो....
रस्ता कठिन है और मुश्किल डगर है,
भोले के भक्तो को ना कोई दर है,
राहो में जितने भी हो कांटे कंकर,
हर इक कंकर में दीखते है शंकर,
भोले के दर चलो......
कावड़ तपस्या है भोले प्रभु की,
ग्रंथो ने महिमा बताई कावड़ की,
होठो पे सुमिरन हो पैरो में छाले,
रोमी तपस्या हम फिर भी कर डाले,
भोले के दर चलो......