कहे थाने मोहन-कहे थाने मोहन, राधा गुजरिया, आओ पधारो मोहन म्हारी नगरिया-२
जब से मोहन हम ना मिले हैं, गोकुल में नहीं फूल खिले हैं-२
सूनी पड़ी म्हारी गोकूल नगरिया, उजड़ गयी है म्हारी बीरज नगरिया।।१।। आओ पधारो...
भूल गए कान्हा हमें,हम तो ना भूले, कदम्ब की डाळी सूने हैं झूले-२
ना बाजे बन्सी ना बाजे रे पायलिया, ना खणके झांझर ना, गूंजे रे मुरलिया।।२।। आओ पधारो...
जमुना के तट पर बैठी मै अकेली, कोई नहीं है म्हारे संग में सहेली-२
रीती पड़ी है म्हारी पाणी की गगरिया, अंसुअन से म्हारी भीगी रे चुनरिया।।३।। आओ पधारो...
दूध की हांडी कान्हा चूल्हे चढ़ी है, माखन की मटकी कान्हा छीके धरी है-२
बाट उड़ीकें थारी, बीरज गुजरिया, थां बिन कोई ना फोड़े दही की मटकिया।।४।। आओ पधारो...
विनती सुणो म्हारी गिरवर धारी, "लक्ष्मी देवी" शरण है थारी-२
चरणां में थारे म्हारी वीते रे उमरिया, पार लगाओ नैया, भव से कन्हैया।।५।। आओ पधारो....
कहे थाने मोहन-कहे थाने मोहन, राधा गुजरिया, आओ पधारो मोहन म्हारी नगरिया-२
भजन रचयिता-विजेन्द्र शर्मा "बिन्दाजी"