चार चीज़ जब उलटी चल जाएं

चार चीज़ जब उलटी चल जाएं राजा, योगी,अग्नि ,जल,
बुद्धि पे परदा पड़ जाये मन कहता है जल्दी चल,

धृतराष्ट्र का दुर्योधन जो कौरवों कुल का चंदा था,
राज के हट ने पागल कर दिया अहँकार में अँधा था,
धर्म युधिष्ठर सत्यवादी जो सत के पुर्जो का रंदा था,
कौरवों कुल का नाश करनिये मामा शकुनी गन्दा था,
हट के कारण नाश करा लिया मिल गया करम करे का फल,
बुद्धि पर परदा पड़ जाए..........

उल्टी चाल चली नारद ने भाव भूल गया अन्दर का,
अहँकार में दीप बुझा लिया अपने मन के मन्दिर का,
कामदेव को जीत लिया जो भरा हुआ छल छन्दर था,
विवाह के कारण नारद जी ने मुँह बनबाया बन्दर का,
हँसे सभी और सभा सभी नारद की मारी गई अकल,
बुद्धि पे परदा पड़

मेघनाथ रावण का बेटा जो रघुवर से लड़ने चला,
राम चन्द्र का भाई लक्ष्मण जो शक्ति से मरण चला,
संजीवनी लेने को हनुमंत छू रघुवर के चरण चला,
मुख में दाव लिया सूरज को मान वली को हरण चला,
समझाने से माना न कहना देख लिया अजमाके बल,
बुद्धि पे परदा पड़ जाये........

जहाँ रखे टटीरी के अण्डे भव सागर ने ध्यान दिया,
हम इनको अब सोखेगे ये सागर ने अभिमान किया,
अगस्त ऋषि के समझाने से ना सागर ने ध्यान दिया,
करके ढाई चुल्लू ऋषि ने सारे जल का पान किया,
'चमनलाल, जल खारी हो गया जो इन्द्रियों से गया निकल,
बुद्धि पे परदा पड़ जाए.....


सिंगर , भरत कुमार दवथरा
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