तेरे दर को छोड़कर,
अरे तेरे दर को छोड़कर, किस दर को जाऊँ मैं ॥
सुनता मेरी कौन है ॥ किसे सुनाऊँ मैं
तेरे दर को छोड़कर...
जब से याद भुलाई तेरी, लाखों कष्ट उठाएं है
ना जाने इस जीवन में, कितने पाप कमाए हैं ॥
हूँ शर्मिंदा आपसे ॥ क्या बतलाऊँ मैं
तेरे दर को छोड़कर...
मेरे पाप कर्म ही तुझसे, प्रीत न करने देते हैं
जब चाहूँ तब मिलू आपसे, रोक मुझे ये लेते हैं ॥
अब किस विधि ॥ प्यारे आपका दर्शन पाऊँ मैं
तेरे दर को छोड़कर...
जो बीती सो बीत गई अब, बाकी उमर सँभालूँगा
आपके चरणों में बैठकर, गीत प्रेम के गा लूँगा ॥
यह जीवन अपना राम जी ॥ सफल बनाऊँ मैं
तेरे दर को छोड़कर...
तूँ है नाथ वरों का दाता, तुझसे सब वर पाते हैं
ऋषि, मुनि और योगी सारे, तेरे ही गुण गाते हैं ॥
छींटा दे दो ज्ञान का ॥ होश में आ जाऊँ मैं
तेरे दर को छोड़कर...
अपलोड कर्ता- अनिल भोपाल बाघीओ वाले