कान्हा जी तोरी मुरली मधुर ना भाये

कान्हा जी तोरी मुरली मधुर ना भायेे,

कान्हा जी तोरी मुरली मधुर ना भाये,
पावन कर् धरि बांस मुरलिया,
मोहें चरनन दूर बिठाये,
कान्हा जी तोरी मुरली
मधुर ना भाये....

धरि मुरली अधरन तुम कान्हा,
करि भ्रमित मंद मुसकाये,
कान्हा जी तोरी मुरली
मधुर ना भाये....

मन ब्यथित ऊर धरि तोहें ध्यावत,
धुन मुरली हिंय झुलसाये,
कान्हा जी तोरी मुरली,
मधुर ना भाये...

सम् मुरली मोरो सुधि लीजो,
मन करुण पुकार सुनाये,
कान्हा जी तोरी मुरली,
मधुर ना भाये.....


आभार: ज्योति नारायण पाठक
वाराणसी
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