धीरे धीरे अँखियाँ माँ खोल रही है,
लगता है मईया कुछ बोल रही है,
दुनिया के नज़ारे तो बेजान लगते ,
सूरज चन्दा कौड़ी के समान लगते,
आत्मा में अमृत घोल रही है ,
लगता है मईया कुछ बोल रही है,
आएगी जरूर मईया आज सामने,
अपने भगतों का देखो हाथ थामने ,
मिलने का मौक़ा ये टटोल रही है ,
लगता है मईया कुछ बोल रही है ,
लागे ना नजर मुझे हो रही फिकर ,
हीरे और मोती से उतार दूँ नजर ,
क्या करूँ मेरा तो ऐसा जोर नहीं है,
लगता है मईया कुछ बोल रही है ,
बनवारी ऐसी तकदीर चाहिए ,
आत्मा में माँ की तस्वीर चाहिए ,
ऐसा ये असर दिल पे छोड़ रही है ,
लगता है मईया कुछ बोल रही है ,
भजन गायक - माधुरी मधुकर
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