सच्चे हिरदये से हो के समर्पित अपने ठाकुर को जो पूजता है,
ढूंढ़ता जो सदा सँवारे को संवारा भी उसे ढूंढ़ता है,
सच्चे हिरदये से हो के समर्पित.........
जिसकी नैया संभाले कन्हियाँ उसको कोई भी डर न भवर का,
एक उसकी ही मंजिल सही है जो पथिक का प्रभु की डगर का,
गम की आंधी उसे क्या उड़ाए जो प्रभु मौज में झूमता है,
ढूंढ़ता जो सदा सँवारे को संवारा भी उसे ढूंढ़ता है,
सच्चे हिरदये से हो के समर्पित.........
जिसका रिश्ता है माया पति से जग की माया उसे क्या लुभाये,
उसकी नजरो में है सब बराबर कोई अपने ना कोई पराये,
जिसके दिल में वसा श्याम सूंदर हर कही श्याम को देखता है
ढूंढ़ता जो सदा सँवारे को संवारा भी उसे ढूंढ़ता है,
सच्चे हिरदये से हो के समर्पित.........
प्रेम की डोर में बांध के भगवन भक्त के द्वार पे चल के आये,
रंग लाती है चाहत तभी तो आके गागर में सागर समाये,
बोल तेरी रजा क्या है प्यारे जीब से ब्रह्म यु पूजता है,
ढूंढ़ता जो सदा सँवारे को संवारा भी उसे ढूंढ़ता है,
सच्चे हिरदये से हो के समर्पित.........
एक दिन छोड़ के जग ये जाना,
बिनु बन जा प्रभु का दीवाना,
श्याम को जिसने अपना माना उसको चरणों में मिलता ठिकाना,
जाने के बाद में ये ज़माना उनके चरणों की रज ढूंढ़ता है,
ढूंढ़ता जो सदा सँवारे को संवारा भी उसे ढूंढ़ता है,
सच्चे हिरदये से हो के समर्पित.........