भीगी पलकों तले सेहमी खवाइश पले,
मंजिले ला पता श्याम कैसे चले,
ऐसे में सँवारे तू बता क्या करे,
घाव अब भी हरा जाने कैसे भरे,
देती ही रहती है दर्द ये दिल लगी,
जाना अब सँवारे क्या है ये ज़िंदगी,
ज़िंदगी वो नदी ुचि लेहरो भरी,
तैरने का हमे कुछ तजुर्बा नहीं,
पौंछा पानी गले ना किनारा मिले मंजिले ला पता,
श्याम कैसे चले....
हाल बेहाल है आँखों में है नमी,
वक़्त भागे बड़ा हसरते है थमी,
राहते कुछ नहीं आजमाती कमी,
सूखे अरमानो की टूटी फूटी ज़मी,
करदे तू इक नजर तृप्त वर सा पड़े,
मंजिले ला पता श्याम कैसे चले....
दास की देवकी किसी तोहीन है,
भक्त की ये दशा क्यों वो गम गीन है,
बढ़ते मेरे कदम पर दशा हीं है,
पूछते है पता वो कहा लीं है,
हाल पे कदमो का जोर भी न चले,
मंजिले ला पता श्याम कैसे चले....
हो गई है कहता तो सजा दीजिये,
प्रेम से प्रेम की पर सुलह कीजिये,
में अब न रहे कुछ बता दीजिये,
छुपती मुझे ख़ुशी का पता दीजिये,
ढूंढे निर्मल तुझे अब लगा लो गले,
मंजिले ला पता श्याम कैसे चले....