अरे आजा रे कृष्णा अपने इस गोकुल,
सताये दर्श की तृष्णा राधा को गोकुल में,
रात मेरी है सुनी सुनी दिन मेरे डूबे डूबे,
पत्थर सा मधुमास लगे है पणशील रूखे रूखे,
लगे सालो से महीना राधा को गोकुल में
अरे कब आओगे कृष्णा अपने इस गोकुल में,
जो होती मैं पंक्षी कृष्णा पास तेर उड़ आती,
बिरहा में कितनी जलती हु आकर तुझे बताती,
पिला दे भाई कोई नि राधा को गोकुल में,
अरे कब आओगे कृष्णा अपने इस गोकुल में,
जब रोये बलजीत ये आंखे मन का धीरज डोले,
जैसे प्राण जाएगे सांसे चलती है होले होले,
चैन है आये कही न राधा को गोकुल में,
अरे कब आओगे कृष्णा अपने इस गोकुल में...