यशुमति कान्हहि यह समुझावति:
यशुमति कान्हहि यह समुझावति,
सुनहु श्याम सब पढ़त लिखत हैं,
इक तुम्हहि बस धेनु चरावत,
यशुमति कान्हहि यह समुझावति-----
ब्रज लरिकन नीक दुलहिन लयिहैं,
बात तोहें काहे समझु न आवति,
यशुमति कान्हहि यह समुझावति-----
ब्रज गोपिन सब दोष मढ़त हैं,
तू फोड़त मटकी चोर कहावत,
यशुमति कान्हहि यह समुझावति----
हँसत हरी सुनि मईया बतियन,
चढ़त गोद मुख अंचरि लुकावति,
यशुमति कान्हहि यह समुझावति---।।
रचना आभार: ज्योति नारायण पाठक
वाराणसी