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श्री कृष्ण चालीसा (updated)

श्री कृष्ण चालीसा
==============
॥ दोहा ॥
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम ।
अरुण अधर जनु बिम्ब फल, नयन कमल अभिराम ॥
पूर्ण इन्द्र अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज ।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज ॥

॥ चौपाई ॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन । जय वासुदेव देवकी नन्दन ॥
जय यशोद्धा सुत नन्द दुलारे । जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ॥
जय नटनागर नाग नथईया l कृष्ण कन्हईया धेनु चरईया ॥
^पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो l आओ दीनन कष्ट निवारो ॥4॥

वंशी मधुर अधर धरि तेरी । होवे पूर्ण विनय यह मेरी ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो । आज लाज भक्तन की राखो ॥
गोल कपोल चिबुक अरुणारे । मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥
^रंजित राजिव नयन विशाला । मोर मुकुट वैजन्ती माला ॥8॥

कुंडल श्रवण पीत पट आछे । कटि किंकिणी काछनी काछे ॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे । छबि लखि सुर नर मुनि मन मोहे ॥
मस्तक तिलक अलक घुँघराले । आओ श्याम बांसुरी वाले ॥
^करि पय पान पूतनहिं तारियो । अका बका कागासुर मारियो ॥12॥

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला । भए शीतल लखतहिं नंदलाला ॥
सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई । मूसर धार वारि वर्षाई ॥
लगत लगत व्रज चहन बहाएयो । गोवर्धन नख धारि बचाएयो ॥
^लखि यशोद्धा मन भ्रम अधिकाई । मुख मंह चौदह भुवन दिखाई ॥16॥

दुष्ट कंस अति उधम मचाएयो । कोटि कमल जब फूल मंगाएयो ॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें । चरण चिह्न दे निर्भय कीन्हें ॥
करि गोपियन संग रास विलासा । सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥
^केतिक महा असुर संहारियो । कंसहि केस पकड़ दे मारियो ॥20॥

मात पिता की बन्दि छुड़ाई । उग्रसेन कहँ राज दिलाई ॥
महि से मृतक छहों सुत लाएयो । मातु देवकी शोक मिटाएयो ॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी । लाये शट दश सहस कुमारी ॥
^दे भीमहिं तृण चीर सहारा । जरासिंधु राक्षस कहँ मारा ॥24॥

असुर बकासुर आदिक मारियो । भक्तन के तब कष्ट निवारियो ॥
दीन सुदामा के दुःख टारियो । तंदुल तीन मूंठ मुख डारियो ॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे l दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥
^लखी प्रेम की महिमा भारी l ऐसे श्याम दीन हितकारी ॥28॥

मार्थ के पार्थ रथ हांके l लिए चक्र कर नहीं बल थाके ॥
निज गीता के ज्ञान सुनाए l भक्तन ह्रदय सुधा बरसाए ॥
मीरा थी ऐसी मतवाली l विष पी गई बजाकर ताली ॥
^राणा भेजा सांप पिटारी l शालि ग्राम बने बनवारी ॥32॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो l उरते संशय सकल मिटायो ॥
तव शत निंदा करी ततकाला l जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई l दीना नाथ लाज अब जाई ॥
^तुरंत ही वसन बने नंदलाला । बढ़े चीर भए अरि मुंह काला ॥ 36 ॥

अस अनाथ के नाथ कन्हईया l डूबत भंवर बचावत नईया ॥
सुन्दर दास आस उर धारी l दया दृष्टि कीजै बनवारी ॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो l क्षमहु बेग अपराध हमारो ॥
^खोलो पट अब दर्शन दीजै l बोलो कृष्ण कन्हईया की जय ॥39॥

॥ दोहा ॥
यह चालीसा कृष्ण का, पथ करै उर धारी ।
अष्ट सिद्धि नव निद्धि फल, लहै पदार्थ चारी ॥
बोलिए वृन्दावन बिहारी लाल की,,, जय l
राधा रमन लाल की,,, जय l

अपलोडर- अनिलरामूर्तिभोपाल

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