किसी का तुम्हे जब सहारा न हो

किसी का तुम्हे जब सहारा न हो,
जहां में कोई जब तुम्हारा न हो,
आ जाना तब तुम शरण में मेरी,
मेरा दर खुला है खुला ही रहे गा तुम्हरे लिये
किसी का तुम्हे जब सहारा न हो,

मिले जो ज़माने की ठोकर तुझे उठा कर गले से लगा लुंगी मैं,
जो रुसवा करे तेरे अपने तुझे तो समान तुझको दिलाऊंगी मैं ,
जो गर्दिश में तेरा गुजारा न हो भटकना भी तुझको गवारा न हो,
आ जाना तब तुम शरण में मेरी,
मेरा दर खुला है खुला ही रहे गा तुम्हरे लिये
किसी का तुम्हे जब सहारा न हो,

अकेले नहीं तुम ही संसार में है तुम से कई मेरे दरबार में,
ना छोड़ू गी तुमको मझदार में मिला लुंगी अपने ही परिवार में,
अगर तू किसी का दुलारा न हो किसी की भी आँखों का तारा न हो,
आ जाना तब तुम शरण में मेरी,
मेरा दर खुला है खुला ही रहे गा तुम्हरे लिये
किसी का तुम्हे जब सहारा न हो,

दुखी दीं हीं की मुश्कानो में मेरा रूप तुझको नजर आएगा,
जो इन्शानियत न हो इंसान में वो जानवर ही तो कहलायेगा,
किसी ने  तुझे तुझे अगर सवारा न हो तेरी गलतियों को सुदारा न हो,
आ जाना तब तुम शरण में मेरी,
मेरा दर खुला है खुला ही रहे गा तुम्हरे लिये
किसी का तुम्हे जब सहारा न हो,
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