घणां दीना सूं चाव है दादी, रखल्यो म्हारी बात माँ,
झुंझनूं मन्दिर में बंचवाल्यो थारो मंगल पाठ माँ,
ई मंगल उत्सव की दादी थे ही करियो जजमानी,
तनधन दादा के सागे, करियो स की निगरानी,
कृष्ण कन्हैया राधा रुक्मण रहवे थारे साथ माँ,
झूंझनू मन्दिर में.........
रामायण गीता सम पावन, मंगल पाठ यो ग्रंथ है,
जिनको रचयता रमाकांत जी तुलसी जी सो संत है,
थारी महिमा हर दोहा हर चोपाई दर्शात माँ,
झुंझनू मन्दिर में........
थारे पीहर सासरिये में न्यूतो माँ भिजवा दीजो
सत्य लोक की देव देवियाँ सगळा ने बुलवा लीजो,
हनुमत वीरा चुनड़ी उढ़ासी, कान्हो भरसी भात माँ,
झूंझनू मन्दिर में ........
बेटा पोता बहु बेटियाँ से भर जावे थारो प्रांगण माँ,
थारो खजानों खोल दीजो, हे भोली बड़भागण माँ,
रख दीजो "जगदीश" भगत के सिर पर थारो हाथ माँ,
झुंझनू मन्दिर में ..........